अभिषेक उपाध्याय श्रीमंत देवराजपुर, सुलतानपुर ,(उ.प्र.)

जब बाहर निकलने से
फैले अँधेरा
जब बाहर निकलने से
 उजड़े बसेरा
जब बाहर निकलने से
सबकुछ हो नशता
जब बाहर निकलने से
कुछ भी न बचता
जब बाहर निकलने से
हावी हो दुश्मन
जब बाहर निकलने से
संकट में जीवन
जब बाहर निकलने से
मिटती हो नरता
जब बाहर निकलने से
बढती हो जड़ता
तो आओ जरा 
घर पे रुक जाएँ दिन कुछ
तो आओ जरा 
घर पे रुक जाएँ सचमुच
तो आओ जरा
घर से संदेशा बाँटें
तो आओ जरा 
पर अँधेरों के काटें
तो आओ जरा
जीत लें भू का क्रन्दन
तो आओ जरा
जीत लें भू का जीवन
तो आओ जरा
जीत लें भू का जीवन।


©अभिषेक उपाध्याय श्रीमंत
देवराजपुर, सुलतानपुर ,(उ.प्र.)


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